निवेदक
महेन्द्र लाल देवांगन
मुख्य प्रबन्धक
म.ता.प. मलांजखन्ड
प्रिय स्वजन
मेरे यह विचार छत्तीसगढ देवांगन समाज के शैक्षिकए समाजिक ए आर्थिक व
राजनैतिक स्थिति व देवांगन समाज की पहचान से सम्बन्धित है|
हमारी पहचान - आखिर हम कौन है और हमारी परंपरागत व्यवसाय क्या है,
1940 के बाद अपने जाति को देवांगन लिखने वाले कोष्टा लोग कौन थे. क्या
सिर्फ क़ोषा के बुनकर थे या क़ोषा के व्यापारी भी थे या जमीन्दार् मालगुजार्
महाजन या किसान थे पुराने इतिहास मे यह सब मिला जुला वर्णन है|
1)
डाक्टर प्यारे लाल गुप्त ने अपनी किताब प्राचीन छत्तीसगढ् मे लिखा है
कि देवांगन लोग भी जमीन्दार् मालगुजार थे और जनता से कर; वसूल कर राजा
के ख़जाना मे जमा करते थे इस बात का सबूत उदाहरण हमे अपने लोगो से बहुत मिलता
है| छान बीन करने पर और भी मिलेगा|
2)
देवांगन लोग साहुकार महाजन भी थे, साहूकर लोग जरुरत मन्द लोगो को ब्याज पर
रकम उधार दिया करते थे|
3)
देवांगन लोग व्यापरी भी थे वे कोशा कपडॅ का व्यापार करते थे|
4) 1980
के दशक मे देवांगन दर्पन नामक पत्रिका प्रकशित होती थी. उसके किसी एक अंक
मे देवांगन समाज की पहचान, वर्ण निर्धारण पर एक लेख था.लेखक ने देवांगन
समाज को बनिया,वैश्य वर्ण प्रतिपादित किया था|
5) समय बीता. कुछ अन्य लोगो ने अन्य श्रोतों
से जानकारी दी कि देवांगन लोग जंन जाति ; आदिवासी,और कुछ लोगो ने जानकारी
दिया कि दीपचन्द देवांगन हमारे पूर्वज थे और उन्हे मॉ शक्ति ने वस्त्र बुनने
का आशीर्वाद दिया,यह सच है कि देवांगन समाज की रीति रिवाज जैसे. बरहीए
खेवाए ज्वारा इत्यादि आदिवासी लोगो के रीति रिवाज जैसे ही है पर दीपचन्द
देवांगन की परिकल्पनाए केवल एक कथा है|
प्रश्न उठता है कि
छतीसगढ़ के देवांगन लोग केवल बुनकर थे तो उन्हे;( देवांगन जाति ) तत्कालिन
मध्य प्रदेश सरकार व भारत सरकार ने , देश के अन्य बुनकर समुदायो की तरह
अनुसूचित जाति मे शामिल क्यॉ नही किया,मेरे विचार से भारत सरकार ने हमको
सिर्फ बुंनकर नही माना, सरकारी रिकार्ड मे देवांगन समाज का जमिन्दार व
महाजन रुपी जानकारी रही होगी|
छतीसगढ सरकार के हाथ करघा विभाग के अनुसारए प्रदेश मे केवल 42000 बुनकर है,
यह हमारी संख्या का केवल 3% है, हो सकता है कि सन 1951 मे 12% लोग बुनकर रहे
होंगे|
आज समय है कि हम अपने पुराने गरिमामयी इतिहास को याद करे व अपने आप को ,
पूरे समुदाय को फिर से प्रगति शील समुदाय कि तरह स्थापित करे| आज देवांगन
समाज मे हजारॉ की संख्या मे मध्यम व उच्च शिक्षित लोग है और अपनी प्रतिभा
को स्थापित कर चुके हैए ऐसे समय मे पुरे देवांगन समाज को केवल बुंनकर
निरुपित करना व अनुसुचित जाति की सुची मे शामिल होने/ कराने का विचार. हमे
बहुत पीछे ले जायेगा| याद रखे कि अनुसुचित जाति के लोगो का आरक्षण के वजह
से कुछ आर्थिक स्तर अच्छा हो गया है पर सामाजिक सम्मान उनको आज भी प्राप्त
नही हुआ है| आज भी सभी प्रकार के उतपीड़न उनके उपर होते है| सामाजिक सम्मान
के बिना आदमी का जीवन घुटन के सिवाय कुछ नही है|
आज अगर हमे आरक्षण प्राप्त हो जाये तो भी उसका फायदा केवल वर्तमान मे
शिक्षित परिवारो को होगा| आपस मे प्रतियोगिता होगी और पिछड़े लोग पीछे ही
रहेगे|
देश की आजादी के बाद छत्तीसगढ़ के साहू समाज ने बहूत प्रगति किया है| वे अपने
परम्परागत व्यवसाय को त्याग दिये और आधुनिकता को आत्मसात किया| आज साहु
समाज का राजनैतिक बोलबाला है|
आज हमारे समाज मे बहूत लोग कम शिक्षित व गरीब है| उनकी आमदनी बढ़ाने के लिये
रोजगार जरूरी है| सदियो से हाथ करघा पर काम करने वाला परिवार गरीबी का
शिकार है| कपड़ा बेचने वाला सेठ मालामाल है और बुनने वाला गरीब है| आज
आधुनिक कपड़ा मिलो के कारण हाथ करघा उद्योग केवल सरकारी अनुदान पर निर्भर
है| सरकार केवल लोगो को रोजगार देने के लिये अनुदान का भार उठाती है| कुछ
चतुर / चालाक लोग इस सरकारी अनुदान पर अपना नजर जमाये रहते है| मेरे विचार
से हाथ करघा रोजगार को त्याग कर अधिक आमदनी वाले रोजगार की ओर जाना जरूरी
है| या फिर पावर लूम से बुनाई करने पर आमदनी बढ सकती है| गरीबी उन्मुलन के
लिये हमे अपने पुराने व बे मतलब के रीति रिवाजो को भी त्यागना होगा| हमे
अपने बच्चो को हमेशा प्रतियोगी परीक्षा के लिये तैयार करना होगा| घर का
वातावरण ज्ञान मयी; (Knowledge
Environment)
होना जरूरी
है|
समाज के अगुवा लोगो की यह जुम्मेदारी बनती है कि वे समाज के गरीबध् असमर्थ
बुधिमान बच्चो को आगे
पढ्ने मे आर्थिक मदद के लिये कुछ उपाय करेण् नवजवानो मे व्यापारिक गुणॉ के
विकास के लिये भी प्रशिक्षण की
जरूरत है और छोटे. छोटे व्यापार के लिये तैयार करे|
अंत मे यह कहना चाहता हुं कि सिर्फ 3% लोगो के लिये देवांगन समुदाय का
पह्चान बुनकर समुदाय के रुप मे नही होना चाहिये| हमे अपनी पहचान महाजन ,
व्यापारी जमीन्दार समुदाय के रुप मे करना चाहिये और अपनी पुरानी प्रतिष्ठा
को पुनः बनाना चाहिये| सभी से निवेदन है कि आप अपनी व देवांगन समाज की
पहचान व्यापारी महाजन के रूप मे बनाये|
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